Saturday, January 12, 2013

लोक सेवा में ही तो छिपा सार है

लोक रंजन नहीं लोक भंजन नहीं.
लोक सेवा में ही तो छिपा सार है.
वो यहीं है कहीं, किन्तु दिखता नहीं.
रूप उसका ही दिखता ये संसार है.
लोक सेवा में.......................

भक्त के भाव में, सत्य के ताव में.
जल रही आग में, डूवती नाव में.
खोज लो वरना जीवन ये बेकार है.
लोक रंजन नहीं लोक भंजन नहीं.
लोक सेवा में.......................

विद्वतों ने कही, चर-अधर में वही.
रूप उसका वही धारण जो रही.
नर की सेवा में नारायणी द्वार है.
लोक रंजन नहीं लोक भंजन नहीं.
लोक सेवा में.......................

दीन उद्धार में, देश के प्यार में.
दुष्ट की हार में बीच मझधार में.
शान्ति दे जो तुम्हें बस वही सार है.
लोक रंजन नहीं लोक भंजन नहीं.
लोक सेवा में.......................

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