Wednesday, January 23, 2013

इक नये भारत का सपना, आज मेरे मन में है

इक नये भारत का सपना, आज मेरे मन में है।
इसलिए ही दर्द सारा, अब मेरे दामन में है।
सिंध से प्रारम्भ जिसका, वो नहीं रुक पा रहा।
और निर्दोषों का प्रतिदिन, रक्त बहता जा रहा।
हो रहीं विधवा निरन्तर, नवविवाहित नारियां।
राष्ट्र-भक्तों के शवों को, ढो रही हैं लारियां।
कौन जाने कष्ट कितना, आज उस आंगन में है।
इक नये भारत का सपना...................................।

जिन्ना, मुशर्रफ, और लादेन, का न रुकता सिलसिला।
सोचिये इस राष्ट्र को अपनों से अब तक क्या मिला।
देश में भी जाने कितने राष्ट्र-घातें कर रहे। 
और हम तो आज भी, बस मधुर बातें कर रहे।
मजहबी उन्माद कितना, दानवी चिन्तन में है।
इक नये भारत का सपना...................................।

पक्षधर हैं जो विभाजन, के उन्हें फांसी मिले।
हिन्दुओं को धर्मस्थल मथुरा, और काशी मिले।
और अयोध्या में बने एक, भव्य मन्दिर राम का।
चिन्ह भी छोड़े न हम, गत दासता के नाम का।
हिन्दु का अस्तित्व केवल, असुर के मर्दन में है।
इक नये भारत का सपना...................................।

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