Saturday, January 12, 2013

तम बहुत है दिया एक जला दीजिये

जाग जाओ, उठो, देश के बन्धुओं
तम बहुत है दिया एक जला दीजिये
यूं अकेले-अकेले न कट पायेगी
प्रेम से मिल गिले सब भुला दीजिये

जाग जाओ, उठो, देश के बन्धुओं
तम बहुत है दिया एक जला दीजिये

जूझते-टूटते कितनी सदियां गयीं
बोध का पुष्प फिर भी न मन में खिला
श्वेत डाला चले राजपथ की डगर
मन तो काला रहा रह गया अनधुला

बोध का पुष्प मन में खिला लीजिये
जाग जाओ, उठो, देश के बन्धुओं
तम बहुत है दिया एक जला दीजिये

राष्ट्र के प्रेम की ध्वस्त हर आस है
अब सृजन की सुखद भावना छल रही
क्षेत्र के, जाति के, वाद कितने खड़े
शीर्ष के स्वार्थ की कामना पल रही

छोड़ हर वाद दिल को मिला लीजिये
जाग जाओ, उठो, देश के बन्धुओं
तम बहुत है दिया एक जला दीजिये

प्रश्न हैं सैकड़ों किन्तु उत्तर नहीं
यह उफनती लहर सब डुबो जायेगी
नाविकों से कहो नाव को खींच लें
डूबती नाव हर चिन्ह खो जायेगी

अब तो पतवार दिल से चला दीजिये।
जाग जाओ, उठो, देश के बन्धुओं।
तम बहुत है दिया एक जला दीजिये

दुष्टता से बढ़ी भ्रष्टता देखकर
क्या हृदय को कोई कष्ट होता नहीं
भूख से देश व्याकुल खड़ा चीखता
देख कर दिल तुम्हारा क्या रोता नहीं

नींव तक दुष्टता की हिला दीजिये
जाग जाओ, उठो, देश के बन्धुओं
तम बहुत है दिया एक जला दीजिये

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