Saturday, January 12, 2013

नहीं भरोसा सिंहासनों पर, दल दल-दल जैसा लगता ह

नहीं भरोसा सिंहासनों पर, दल दल-दल जैसा लगता है
मुश्किल से ही इस कीचड़ में कोई कमल जैसा लगता है


राजसभा जिसको कहते हो
जिसकी मर्यादा समझाते
खुद भी उसका मान न करते
वेशक सर्वोपरि बतलाते

तुम्हें खजाने की चाबी औ’ हमको जंगल सा लगता है
मुश्किल से ही इस कीचड़ में.......................


पता नहीं यह आपाधापी
कब से फैली कब तक फैले
उजले वस्त्र पहनने वाले
हमको तो लगते हैं मैले

तुमको चाहे अमृत हो यह हमे गरल जैसा लगता है
मुश्किल से ही इस कीचड़ में.......................


मांग रहे जो देश समूचा
उन पर सोने की बरसातें
मांग रहे जो रोटी-कपड़ा
उन्हें गोलियों की सौगातें

तुम उनको अपराधी कहते हमें सरल जैसा लगता है
मुश्किल से ही इस कीचड़ में.......................


लूटपाट से मन को भरना
यह अच्छा व्यवहार नहीं है
जरा सोच कर देखो तुम भी
इच्छाओं का पार नहीं है

झौंपड़ियों का सुख भी हमको स्वर्णमहल जैसा लगता है
मुश्किल से ही इस कीचड़ में.........................


देश लुटा है और लुट रहा
तुम भी प्यारे कुछ तो बोलो
शोषण पर अत्याचारों पर
मुट्ठी भींचो मंह को खोलो

मैं कहता हूं तो यह तुमको गीत गजल जैसा लगता है
मुश्किल से ही इस कीचड़ में.........................

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