Wednesday, January 16, 2013

जब से जन्मा तब से मैंने दुनिया के लाखों रंग देखे

मैं हूं कौन? कहां से आया?
मुझको कोई भान नहीं क्यों?
आया हूं किसलिए और क्यों?
मुझको कोई ज्ञान नहीं क्यों?

जब से जन्मा तब से मैंने
दुनिया के लाखों रंग देखे।
लाखों और करोड़ों वालों
के भी जीने के ढंग देखे।

शैशव से ही बन्दूकों के
सुने धमाके, दिल दहलाये।
सहमी सी आखों से देखे,
मैंने आतंकों के साये।

मैंने अपना होेश संभाला,
है गोली की आवाजों से।
रोज सुरक्षा होते देखी
है हिंसा की आगाजों से।

एक-एक से बढ़कर योद्धा,
साहस का कुछ तौल नहीं था।
स्वाभिमान के बड़े समर में,
सम्पत्ति का मोल नहीं था।

घटनाओं के वर्णन क्या दूं,
बहुत जिया हूं डेढ़ दशक में।
अपना तो सारा जीवन ही,
गुजरा पीड़ा और कसक में।

बड़े भले रूपों में मुझको
तरह-तरह के चोर मिले हैं।
कुछ तो अपनों में से निकले,
बाकी के कुछ और मिले हैं।

तरह-तरह से लुटते आये,
नये सवेरे की आशा में।
फिर भी नहीं जान पाये हम,
छल प्रपंच उनकी भाषा में।

कोई धन के कोई मन केे,
कई तरह के शोषक देखे।
भ्रष्टाचारी पापी देख,
दुव्र्यसनों के पोषक देखे।

श्वेत वस्त्र में छिपे हुये,
कुछ गुण्डे और मवाली देखे।
छेड़छाड़ और लूटपाट में,
‘वर्ग बिशेष’ बवाली देखे।

शोषित और पीड़ितों की जब
पीड़ा हृदय नहीं सह पाया।
जब-जब उनकी दुर्गति देखी,
तब-तब मैंने शस्त्र उठाया।

और उसी प्रतिकार मात्र से,
मुझको कानूनी बद्ध कर दिया।
राजनीति के अगुआओं ने,
मुझको गुण्डा सिद्ध कर दिया।

लेकिन समय-समय पर मैंने,
कुछ-कुछ लोग भले भी पाये।
जो दानवता के विरोध में,
साथ हमेशा मेरे आये।

लेकिन स्वार्थ और लालच में,
छोड़ गये कुछ मुझको ऐसे।
जैसे ज्यादा धन पाने को,
वैश्या ग्राहक बदले वैसे।

तुच्छ स्वार्थों को विचार पर,
मैंने हावी होते देखा।
कभी विचारों के साथी थे,
कभी ‘बीज बिष’ बोते देखा।

मैं विचार की भावुकता मैं,
भौतिकता से पिछड़ न जांऊ।
पर पीड़ा से जलने वाला,
निज कष्टों में जकड़ न जांऊ।

हे ईश्वर कुछ शान्ति मुझे दे,
मैं तेरे कुछ कार्य कर सकूं।
नहीं मुझे सम्पत्ति चाहिये,
लेकिन मैं निर्भार मर सकूं।

आत्मबोध के सभी प्रयासों,
को प्रभु अब ना और हिलाओ।
मैं हूं कौन? कहां है जाना?
मुझको मेरा मार्ग सुझाओ।


कहीं भटक ना जाऊं प्रभु मैं,
हर क्षण के झंझावातों से।
कहीं हृदय से टूट न जाऊं,
प्रतिपल लगते आघातों से।

मुझे माक्र्स के चिंतन से बढ़
सावरकर चिंतन भाता है।
नहीं अर्थ का मैं चिंतक हूं,
मुझे राष्ट्र चिंतन भाता है।

करो कृपा प्रभु मुझ पर ऐसी,
इस चिंतन की धार न टूटे।
भौतिकता के इस अभाव से,
राष्ट्र-धर्म से प्यार न टूटे..

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