Wednesday, January 23, 2013

पड़ गये मेरे कदम भी, आज कारागार में

डूबती जाती है दुनिया, आज भृष्टाचार में।
पड़ गये मेरे कदम भी, आज कारागार में।

दण्ड के भागी हैं करते, मस्तियां बाजार में।
सड़ रहे निर्दोष फिर भी, बहुत कारागार में।
न्याय की ही प्रक्रिया में, लोग आते हैं यहां।
किन्तु फिर भी देखने पर, न्याय दिखता है कहां।
कर्म ही अपराध जिनका, ऐश हैं वो कर रहे।
समय ने रौंदा जिन्हें पल-पल हैं वे ही मर रहे।
न्याय तो अन्याय बनकर, रह गया संसार में।
पड़ गये मेरे कदम.......................................।

मन से जो टूटे हुए है, वो भी तन से टूटते।
करते अत्याचार तन पर, और धन से लूटते।
दानवों की भूमिका में, हैं पुलिसिए जेल में।
रात दिन रहती है दृष्टि, मात्र धन के खेल में।
धो रहे हैं कुछ तो मुंह को, अश्रु के अम्बार में।
पड़ गये मेरे कदम..............................                                                                                                                    जिला कारागार
हरिगढ़
दिनांक-25 जून-15 अगस्त 2006

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