Wednesday, January 16, 2013

मानव का मानव से अब तो कोई प्यार नहीं दिखता

मानव का मानव से अब तो कोई प्यार नहीं दिखता है.
यह दुनिया बाजार हो गई, आज यहाँ सब कुछ बिकता है.
बात गई भाईचारे की.
बढ़ती है रट बँटवारे की.
दया प्रेम कुछ कर्म नहीं है.
मानवता अब धर्म नहीं है.
अंध हो रही तरूणाई है.
पशुता ने ली अंगड़ाई है.
धर्म गया ईमान खो गया.
अन्दर का इन्सान खो गया.
सबकी चाहें भरें उड़ानें जन्नत से सबका रिस्ता है।
यह दुनिया बाजार हो गई, आज यहाँ सब कुछ बिकता है.
जब से जितना नोट बढ़ा है.
मानवता में खोट बढ़ा है.
चोट बढ़ी अत्याचारों की.
बात बढ़ी भ्रष्टाचारों की.
शब्दों का व्यापार बढ़ा है.
पापों का संसार बढ़ा है.
निज-हित में मक्कार बढ़े हैं.
घर-घर में गद्दार बढ़े हैं.
नोटों की गड्डी के आगे ऋत को नर अनृत लिखता है।
यह दुनिया बाजार हो गई, आज यहाँ सब कुछ बिकता है.
रिश्ते नाते विक जाते हैं.
नेता-मन्त्री चुक जाते हैं.
बिकता अपना संविधान है.
पैसे से बनता बिधान है.
यही हाल तो देश बिकेगा.
धर्म यहाँ किस भाँति टिकेगा.
इक दिन शैतानी छल होगा.
प्रश्न भला कैसे हल होगा.
राम कह गये कृष्ण कह गये ‘सत्य’ सदा बल र्से िटकता है.
यह दुनिया बाजार हो गई, आज यहाँ सब कुछ विकता है.

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